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सात दिवसीय अखिल भारतीय सद्भावना व्याख्यानमाला में आज से आरंभ होगा वैचारिक मंथन का दौर
19-Nov-2020,15:55:36,व्याख्यानमाला | Download Press Note : Download |
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा पद्मभूषण डॉ शिवमंगल सिंह सुमन स्मृति अष्टदश अखिल भारतीय सद्भावना व्याख्यानमाला में देशभर के बुद्धिजीवी प्रखर वक्ताओं द्वारा समाज में सद्भावना कायम करने के लिए वैचारिक मंथन का दौर आज से प्रतिदिन सायं 5 से 6 के बीच आरंभ होगा। इस बार अखिल भारतीय सद्भावना व्याख्यानमाला ऑनलाइन विधा से आयोजित की जा रही है। सात दिवसीय व्याख्यानमाला का शुभारंभ ख्यात गांधीवादी एवं समाजसेवी श्री अमर हबीब के व्याख्यान से होगा ।श्री अमर हबीब "सर्जकों की आजादी" विषय पर व्याख्यानमाला को संबोधित करेंगे। व्याख्यानमाला की अध्यक्षता महाराष्ट्र के शिक्षाविद एवं समाजसेवी श्री सदा विजय आर्य करेंगे। संस्था अध्यक्ष श्री कृष्ण मंगल सिंह कुलश्रेष्ठ ने सभी सद्भावना प्रेमियों से इस आयोजन में ऑनलाइन सम्मिलित होने का आह्वान किया है।
श्रम शक्ति का महत्व महात्मा गांधी ने संपूर्ण विश्व को बताया है - माननीय न्यायमूर्ति श्री जे.पी. गुप्ता जी
02-Oct-2019,20:10:12,व्याख्यानमाला | Download Press Note : Download |
श्रम शक्ति का महत्व महात्मा गांधी ने संपूर्ण विश्व को बताया है - माननीय न्यायमूर्ति श्री जे.पी. गुप्ता जी
उज्जैन।
आज समुचा विश्व महात्मा गांधी के आदेशों को स्वीकार कर रहा है। महात्मा
गांधी के दर्शन में वर्तमान की सभी समस्याओं का निदान सम्मिलित है। सत्य,
अहिंसा और प्रेम रूपी तीन सिद्धांत महात्मा गांधी ने राजनैतिक, आर्थिक,
सामाजिक क्षेत्र में अपनाये और इन्हीं सिद्धांतों के आधार पर देश को आजाद
करवाया। गांधी ने ही हमें बताया कि श्रम शक्ति का महत्व हम सभी को स्वीकार
करना चाहिए। जो श्रम नहीं करता है उसे भोजन ग्रहण करने का अधिकार भी नहीं
होना चाहिए। महात्मा गांधी धार्मिक थे किन्तु उनका धर्म मानवीय मूल्यों,
मनुष्यता, नैतिकता और समाज सेवा पर आधारित था। उक्त विचार मध्यप्रदेश उच्च
न्यायालय जबलपुर के न्यायमूर्ति श्री जे.पी. गुप्ताजी ने भारतीय ज्ञानपीठ
में आयोजित कवि कुलगुरू डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ स्मृति सप्तदश अ.भा.
सद्भावना व्याख्यान माला के समापन दिवस पर ‘धर्म एवं मानवतावाद पर गांधीजी
के विचार’ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किये। न्यायमूर्ति श्री
जे.पी. गुप्ता जी ने कहा कि महात्मा गांधी ने सभी धर्मां का अध्ययन किया था
और सभी धर्मा के सार को अपनाते हुये नैतिक मूल्यों को महत्व देते हुए
स्वाधीनता आन्दोलनों को गति प्रदान करी। यदि हम गांधी के सपनों का भारत
बनाना चाहते है तो यह आवश्यक है कि राजनीति ऐसे लोगों द्वारा की जाये जिनका
आचरण नैतिक हो। यदि यह संभव होता है तो ही लोकतंत्र मजबुत होगा और मानव
कल्याण के कार्य निरंतर हो सकेंगे। न्यायमूर्ति श्री जे.पी. गुप्ता ने समाज
में सद्भावना कायम करने की दिशा में किये गए उल्लेखनीय प्रयासों के लिए
श्रीकृष्ण मंगलसिंह कुलश्रेष्ठ को ‘मालवा के गांधी’ से सम्बोधित किया।
समारोह
की अध्यक्षता करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति ख्यात संस्कृतविद्
डॉ. बालकृष्ण शर्मा ने ‘वैष्णवजन-महात्मागांधी’ विषय पर अपने विचार व्यक्त
करते हुए कहा कि प्रसिद्ध भजन वैष्णवजन के प्रत्येक शब्द से गांधी का
सम्पूर्ण जीवन प्रभावित रहा है। यह भजन दूसरों की पीड़ा को जानने की बात
करता है। यही कारण है कि परपीड़ा को जानने के लिए महात्मा गांधी ने सिर्फ एक
वस्त्र में रहने का संकल्प लिया ताकि वह अभाव में रहने वाले लोगों की पीड़ा
को जान सके। यह भजन परोपकार और परनिंदा की बात न करने का संदेश देता है।
महात्मा गांधी के जीवन में भी यही प्रतिफलित हुआ है। समस्त प्राणियों में
ईश्वर के दर्शन की बात इस भजन में समाहित है और ऐसा ही गांधीजी ने अपने
जीवन में फलीभूत किया है।
डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की प्रतिमा का हुआ अनावरण
समारोह
के आरंभ में अतिथियों न्यायमूर्ति श्री जे.पी. गुप्ता एवं विक्रम
विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बालकृष्ण शर्मा द्वारा कवि कुलगुरू डॉ.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की प्रतिमा का अनावरण भारतीय ज्ञानपीठ परिसर में किया
गया। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शिव चौरसिया ने डॉ. शिवमंगल सिंह
‘सुमन’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला।
स्वागत
उद्बोधन संस्था अध्यक्ष श्री कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ ने दिया।
व्याख्यानमाला के आरंभ में संस्था की छात्राओं ने सर्वधर्म प्रार्थना
प्रस्तुत की। अतिथि स्वागत एड्व्होकेट्स श्री योगेश व्यास, श्री
चन्द्रप्रकाश चौरड़िया, श्री हरदयाल सिंह ठाकुर, श्री दिनेश पण्ड्या, श्री
सुरेश शर्मा, श्री रवि राय एवं श्री रणवीर सिंह कुशवाह ने किया।
इस अवसर पर वक्ताओं का शाल और श्रीफल से सम्मान किया गया। समारोह का संचालन वरिष्ठ अभिभाषक श्री कैलाश विजयवर्गीय ने किया।
गांधी की नेतृत्व क्षमता सत्य और अहिंसा पर आधारित है - श्री जनक मेहता
01-Oct-2019,19:55:30,व्याख्यानमाला | Download Press Note : Download |
गांधी की नेतृत्व क्षमता सत्य और अहिंसा पर आधारित है - श्री जनक मेहता
उज्जैन।
महात्मा गांधी के नेतृत्व में लाखों लोगों ने मिलकर अंग्रेजों के विरूद्ध
संघर्ष किया और देश को स्वतंत्रता दिलाई। महात्मा गांधी यह चमत्कार इसलिए
कर पाए क्योंकि उनकी नेतृत्व क्षमता अद्भुत थी जो सत्य और अहिंसा पर आधारित
थी। यह गांधीजी की नेतृत्व क्षमता का ही परिणाम है कि उनके साथ मिलकर
कार्य करने वाले लोग भी अपने आप में नेतृत्व करना सींख जाते थे। गांधीजी का
नेतृत्व यह सीखाता है कि किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आप जिस
समूह का नेतृत्व कर रहे है उसमें लोगों के विचारों में मतभिन्नता होना
निश्चित है किन्तु इसके बाद भी सारे मतों का रूख सिर्फ लक्ष्य की सफलता की
दिशा में हो यह नेतृत्वकर्ता पर निर्भर करता है। उक्त विचार स्पेसर सेंटर
इन्दौर के निदेशक एवं साहित्यकार श्री जनक मेहता ने भारतीय ज्ञानपीठ में
आयोजित कवि कुलगुरू डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ स्मृति सप्तदश अ.भा. सद्भावना
व्याख्यान माला के पंचम दिवस पर ‘गांधीजी की नेतृत्व क्षमता’ विषय पर मुख्य
वक्ता के रूप में व्यक्त किये। श्री जनक मेहता ने कहा कि आजादी के
आन्दोलनों में देशवासी महात्मा गांधी के नेतृत्व को स्वीकार कर गर्व का
अनुभव करते थे। हम हमारा दुर्भाग्य है कि ऐसे महान व्यक्तित्व को हमने
आदर्शो से ज्यादा फोटो के रूप में आत्मसात करना शुरू कर दिया है। गांधी के
नाम पर इमारतें, मार्ग और संस्थाऐं तो बहुत है किन्तु हम गांधी के विचारों
को और उनकी अद्भुत नेतृत्व क्षमता को भूलते जा रहे है। हम कल्पना ही कर
सकते है कि जिस समय देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था उस समय देश के लाखों
लोगों के मन में स्वाभिमान जागृत करते हुए उन्हें आन्दोलनों में सक्रिय
करना अपने-आप में एक चमत्कार से कम नहीं है किन्तु यह गांधी की नेतृत्व
क्षमता के कारण संभव हो सका।
अध्यक्षीय उद्बोधन में लातूर
के वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार श्री अतुल देउलगांवकर ने ‘वातावरण बदलाव
की चुनौती’ विषय पर कहा कि निश्चित रूप से हम पर्यावरण में बदलाव के एक
भयंकर दौर से गुजर रहे है। आज हम इस स्थिति में है कि पृथ्वी का तापमान दो
डिग्री अधिक ओर बढ़ जाता है तो हमारा जीवन विनाश के और करीब आ जायेगा।
वास्तव में प्रदुषण करने वालों के साथ प्रदुषण सहने वाले भी उतने ही दोषी
होते है। हम अमेजन के जंगलों की आग नहीं बुझा पा रहे है। साइबेरिया के जंगल
भी बुरी तरह जल रहे है। इन सभी से लगभग दो सौ तीस करोड़ टन कार्बन डाई
आक्साईड आसमान में चला गया है। यह हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है। दुनिया की
सबसे श्रेष्ठ ग्रीन नगरों की सूची में भारत का एक भी नगर नहीं है। दिल्ली
की स्थिति यह है कि उसे सिटी ऑफ अस्थमा कहा जा रहा है। यदि सहीं हाल रहा तो
जिस तरह पानी बोतलों में मिलता है उस तरह श्वास लेने के लिए ऑक्सीजन भी
खरीदना पडे़गी।
स्वागत उद्बोधन संस्था
अध्यक्ष श्री कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ ने दिया। व्याख्यानमाला के आरंभ
में संस्था की छात्राओं ने सर्वधर्म प्रार्थना प्रस्तुत की। अतिथि स्वागत
डॉ. पुष्पा चौरसिया, श्री सत्यनारायण सौनक, श्री रमेशचन्द्र चतुर्वेदी,
श्री ऋषिकेश विभुतें एवं श्री सुधीर श्रीवास्तव ने किया।
इस
अवसर पर वक्ताओं का शाल और श्रीफल से सम्मान वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम
सेनानी श्री प्रेमनारायण नागर जी किया गया। संचालन विद्यालयीन शिक्षिका
श्रीमती करूणा गर्गे ने किया।
अ.भा. सद्भावना व्याख्यानमाला में दिनांक 2 अक्टूबर 2019 बुधवार के आयोजन
सप्तदश
अ.भा. सद्भावना व्याख्यानमाला का समापन दिनांक 2 अक्टूबर को सायं 4 से 7
बजे होगा, जिसके अन्तर्गत होने वाले आयोजन इस प्रकार है-
1.
भारतीय ज्ञानपीठ परिसर में पद्मभुषण डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की प्रतिमा
का अनावरण सांय 4 से होगा। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शिव चौरसिया
द्वारा डॉ. सुमन जी के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर चर्चा की जायेगी। डॉ.
सुमन जी की कविताओं की संगीतमयी प्रस्तुतियां भी दी जायेगी।
2.
अ.भा. सद्भावना व्याख्यानमाला में जबलपुर के माननीय न्यायमूर्ति श्री
जे.पी. गुप्ता ‘धर्म एवं मानवतावाद पर गांधी के विचार’ विषय पर अपने विचार
व्यक्त करेंगे एवं समारोह की अध्यक्षता करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय के
कुलपति डॉ. बालकृष्ण शर्मा द्वारा ‘वैष्णवजन महात्मागांधी- डॉ. सुमन
स्मृति’ विषय पर अपना व्याख्यान देंगे।
बुद्ध की दी गई शिक्षा से विश्व शांति संभव है - डॉ. सीताराम दुबे
30-Sep-2019,19:51:59,व्याख्यानमाला | Download Press Note : Download |
बुद्ध की दी गई शिक्षा से विश्व शांति संभव है - डॉ. सीताराम दुबे
उज्जैन।
वर्तमान में भले ही अत्याचार, भ्रष्टाचार, अनाचार और हिंसा का बोलबाला है
किन्तु इसमें कोई संदेह नहीं कि बुद्ध की दी गई शिक्षा ही समाज में नैतिकता
कायम कर सकती है। बुद्ध के आदर्शो पर चलकर ही विश्व शांति और अहिंसा के
सन्मार्ग पर चल पायेगा। बुद्ध ने कहा है कि किसी भी समाज में गरीबी सबसे
बड़ा दोष होता है गरीबी ही अशांति और हिंसा का एक कारण हो सकती है। ऐसे में
एक राजा का दायित्व होता है कि वह समाज से गरीबी को पूर्णरूप से दूर कर
दें। राज्य में पूंजी का वितरण समान रूप से करने की जिम्मेदारी भी राजा की
है। बुद्ध की कल्पना में यदि राजा का प्रशासन समाज में समरसता लाने वाला हो
और ऐसा करने के लिए यदि वह प्रजा को कष्ट भी देता है तो इसमें कोई बुराई
नहीं। वाणी में संयम रखते हुए हम सद्भावना को प्राप्त कर सकते है। व्यक्ति
में यदि करूणा है तो वह कभी हिंसक नहीं हो सकता। बुद्ध के अनुसार कैसी भी
विपरीत परिस्थिति क्यों न हो, हमें शांति और सद्भाव बनाए रखना चाहिए। यह
तभी संभव है जब हम संयम को अपनाये। उक्त विचार बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय
वाराणसी के प्राध्यापक डॉ. सीताराम दुबे ने भारतीय ज्ञानपीठ में आयोजित कवि
कुलगुरू डॉ. षिवमंगल सिंह ‘सुमन’ स्मृति सप्तदश अ.भा. सद्भावना व्याख्यान
माला के पंचम दिवस पर ‘बौद्ध अहिंसा की प्रकृति एवं सद्भावना स्थापना में
उसकी प्रासंगिकता’ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किये। डॉ.
सीताराम दुबे ने कहा कि कुछ लोगों का मत है कि पहले सिर्फ शांति का ही युग
था। धीरे-धीरे मनुष्य के मन में जब विकृति आई तब हिंसा और अनाचार आरंभ हुए
और शासन के लिए राजा बनाये जाने की प्रथा आरंभ हुई। कुछ लोगों का यह मत है
कि जीवन का आरंभ हिंसा से हुआ है जब व्यक्ति अपने आहार के लिए पशुओं की
हिंसा पर निर्भर था। धीरे-धीरे जब उसने पशुओं को पालना आरंभ किया तब परस्पर
प्रेम शांति और सद्भाव का प्रादुर्भाव हुआ। हमें विश्वास है कि बुद्ध के
विचारों के प्रति हमारा अनुसरण लगातार बढ़ेगा और हम विश्व शांति की ओर
लौटेंगे।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में क्षैत्रिय शिक्षा संस्थान, भोपाल
शिक्षा विभाग प्रमुख डॉ. रमेश बाबू ने ‘संवैधानिक मूल्यः शिक्षा की भूमिका’
विषय पर कहा कि टीवी पर जानकारियों के लिए चैनल्स लगातार बढ़ते जा रहे है
किन्तु हमारी समझ उतनी ही घटती जा रही है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि
हमने संवाद करना बंद कर दिया है। यदि हम गांधी को समझना चाहते है तो
सर्वप्रथम हमें हमारे संविधान को समझना होगा और यदि हम संवैधानिक मूल्यों
को युवा पीढ़ी तक पहुंचाना चाहते है तो हमें संवाद लगातार स्थापित करना
होगा। भारत विविधताओं से भरा देश है यह विविधता ही हमारी शक्ति है। गांधी
जी का विचार था कि भारत एक धर्म नहीं बल्कि विभिन्न धर्मो का एक देश होगा।
इसी विचार से धर्मनिरपेक्षता प्रभाव हमारे संविधान में आया। हमें चाहिए कि
हम संविधान के अधिकारों के प्रति जागरूक हो। संविधानकर्ता के अनुसार
असमानता से समानता की ओर हमें जाना चाहिए किन्तु आज इसका विपरीत हो रहा है।
हमें बुनियादी शिक्षा के अर्थ को जानकर हर व्यक्ति तक मूलभूत शिक्षा
पहुंचाना चाहिए, तभी देश में समानता आयेगी।
स्वागत उद्बोधन संस्था
अध्यक्ष श्री कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ ने दिया। व्याख्यानमाला के आरंभ
में संस्था की छात्राओं ने सर्वधर्म प्रार्थना प्रस्तुत की। अतिथि स्वागत
श्री लक्ष्मीनारायण परमार, श्री अरविन्द श्री कुलदीप कुशवाह, श्री सुनील
गांदिया, श्री सुरेश भीमावद एवं श्री विमलेंदु घोष ने किया।
इस
अवसर पर वक्ताओं का शाल और श्रीफल से सम्मान वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम
सेनानी श्री प्रेमनारायण नागर जी किया गया। संचालन महाविद्यालयीन प्राचार्य
डॉ. नीलम महाडिक ने किया। आभार विद्यालयीन प्राचार्य श्रीमती मीना नागर ने
माना।
अ.भा. सद्भावना व्याख्यानमाला में कल दिनांक 1 अक्टूबर 2019 मंगलवार के आयोजन
सप्तदश
अ.भा. सद्भावना व्याख्यानमाला दिनांक 1 अक्टूबर 2019 को सांय 5 बजे से
प्रखर वक्ता एवं प्रसिद्ध साहित्यकार एवं निदेशक स्पेसर सेंटर, इन्दौर के
श्री जनक मेहता ‘गांधीजी की नेतृत्व क्षमता’ विषय पर अपना व्याख्यान देंगे।
तथा अध्यक्षीय उद्बोधन में लातूर के वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार श्री
अतुल देउलगांवकर ‘वातावरण बदलाव की चुनौती’ विषय पर अपने व्याख्यान देंगे।
विश्व का भविष्य सद्भावना से ही सुरक्षित रहेगा - श्री प्रकाश आर. अर्जुनवार
29-Sep-2019,19:44:14,व्याख्यानमाला | Download Press Note : Download |
विश्व का भविष्य सद्भावना से ही सुरक्षित रहेगा - श्री प्रकाश आर. अर्जुनवार
उज्जैन।
महात्मा गांधी का जीवन अपने आप में आदर्शों का ऐसा सागर है जिसकी गहराई
अनन्त है। गांधी को समझने की प्रक्रिया भी अनन्त है। गांधी ने शांति और
सद्भावना का सन्मार्ग हम सभी को दिया है, इसी मार्ग पर चल कर विश्व का
भविष्य सुरक्षित रह पायेगा। गांधी की सद्भावना में वह शक्ति थी कि उनसे
घृणा करने वाला व्यक्ति भी उनके संपर्क में आकर उनसे प्रेम करने लगता था ।
अशांति की बात करने वाले लोग वे होते है जो युद्ध के सामान का व्यापार
करते है। उन्हें डर होता है कि शांति व्याप्त होने से कहीं यह व्यापार बंद न
हो जाये। गांधी की सद्भावना को हमें प्रत्येक युवा तक पहुंचाना ही चाहिए।
गांधी वह व्यक्तित्व है जिन्हें एक सर्वेक्षण के अनुसार विश्व के सौ
सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्वों में से चुनकर सदी का महामानव घोषित किया गया है
किन्तु ऐसे गांधी को हम अपने ही देश में भुलाने में लगे है। उक्त विचार
गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता (महाराष्ट्र) श्री प्रकाश आर. अर्जुनवार ने
भारतीय ज्ञानपीठ में आयोजित कवि कुलगुरू डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ स्मृति
सप्तदश अ.भा. सद्भावना व्याख्यान माला के चतुर्थ दिवस पर ‘महात्मा गांधी की
सद्भावना और भविष्य’ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किये। श्री
प्रकाश आर. अर्जुनवार ने कहा कि युवाओं में सत्य बोलने की आदत डालना बहुत
आवश्यक है। यदि ऐसा हम कर पाते है तो समाज में से भ्रष्टाचार बहुत हद तक
समाप्त हो जायेगा। देश के युवाओं में नशे की प्रवृति बढ़ती जा रही है उसे
रोकना बहुत ही आवश्यक है तभी हम युवा की प्रतिभाओं को राष्ट्र के विकास में
उपयोग कर सकते है और साथ ही स्वस्थ समाज का भी निर्माण कर सकते है।
अपने
अध्यक्षीय उद्बोधन में कालिदास कन्या महाविद्यालय के प्राध्यापक एवं
वाणिज्य विभागाध्यक्ष डॉ. शैलेन्द्र भारल ने ‘शिक्षा, सद्भाव और मानवीय
मूल्य’ विषय पर कहा कि हम युवाओं को शिक्षित तो कर रहे है किन्तु उनके
ज्ञान में वृद्धि नहीं हो रही है। शिक्षा वह है जो आपकी दृष्टिकोण को बदल
दे, शिक्षा वह है जो आपमें सफलता का विश्वास उत्पन्न करें, शिक्षा वह है जो
आपमें मानवीय मूल्यों का विकास करें, शिक्षा वह है जो विद्यार्थियों में
सद्भावना का संचार करें। यदि ऐसी शिक्षा हम दे पाते है तो निश्चित रूप से
हमारा समाज एवं विश्व का एक सर्वाधिक शांतिपूर्ण और विकसित समाज बन पायेगा।
एक समय था कि लोग घरों से बाहर जाने पर ताला नहीं लगाते थे और परस्पर
विश्वास एक दूसरे पर कायम था। यह हमारे नैतिक मूल्यों की शक्ति थी। हमें इस
शक्ति को पुनः प्राप्त करना होगा। एक सर्वेक्षण के अनुसार कुल शिक्षित
लोगों में से सिर्फ 26 प्रतिशत लोगों के पास ज्ञान या कौशल है। यह आंकड़ा
चौकाने वाला है। यह आंकड़ा तभी बदल सकता है जब एक शिक्षक किताब में लिखी
जानकारियों के अतिरिक्त ज्ञान विद्यार्थियों को दे।
स्वागत
उद्बोधन संस्था अध्यक्ष श्री कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ ने दिया।
व्याख्यानमाला के आरंभ में संस्था की छात्राओं ने सर्वधर्म प्रार्थना
प्रस्तुत की। अतिथि स्वागत सावन कुमार नागेश्वर, श्री राकेश भारद्वाज, श्री
सुनील भारद्वाज, श्री अनिल नागेश्वर, एड्व्होकेट बी.एल. चौहान, श्री कैलाश
नारायण शर्मा, श्री नारायण मंघवानी, श्री आर.वी. यादव एवं श्री गौतम
शिल्लारे ने किया।
अ.भा. सद्भावना व्याख्यानमाला में कल दिनांक 30 सितम्बर 2019 सोमवार के आयोजन
सप्तदश अ.भा. सद्भावना व्याख्यानमाला दिनांक 30 सितम्बर 2019 को सांय 5 बजे से प्राध्यापक, बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय वाराणसी के डॉ. सीताराम दुबे ‘बौद्ध अहिंसा की प्रकृति एंव सद्भावना स्थापना में उसकी प्रासंगिकता विषय पर अपना व्याख्यान देंगे। तथा अध्यक्षीय उद्बोधन में भोपाल के आर.आई. ई. के प्रोफेसर ‘ ‘संवैधानिक मूल्यःशिक्षा की भूमिका’ विषय पर अपने व्याख्यान देंगे।
देश की समस्याओं का निराकरण आपसी सद्भाव से ही संभव है - हाजी श्री अरशान खान
28-Sep-2019,19:55:29,व्याख्यानमाला | Download Press Note : Download |
सादर प्रकाशनार्थ,
देश की समस्याओं का निराकरण आपसी सद्भाव से ही संभव है - हाजी श्री अरशान खान
उज्जैन। आजादी के बाद भी आज देश कई ज्वलंत समस्याओं से जुझ रहा है। जिन लोगों ने देश की आजदी में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है उन्हें समाज की मुख्य धारा में होना चाहिए था किन्तु वही लोग संघर्षो के साथ जी रहे है। देश को जोड़ने वाले विचारों को अपनाना होगा। समाज का विकास एक साथ मिलकर चलने से ही संभव होगा। देश की सभी समस्याओं का निराकरण परस्पर सद्भाव में ही निहित है। सरकारों को चाहिए कि समस्याओं की प्राथमिताऐं तय करें। जिन समस्याओं का संबंध आम व्यक्ति से है उनका निराकरण जल्द से जल्द होना आवश्यक है। समाज का विकास तभी संभव होगा जब हम शिक्षा रोजगार, भाईचारें जैसे मुद्दों पर विशेष ध्यान दे। उक्त विचार राष्ट्रीय कार्यकारिणी अल्पसंख्यक विभाग नई दिल्ली के सदस्य हाजी श्री अरशान खान ने भारतीय ज्ञानपीठ में आयोजित कवि कुलगुरू डॉ. षिवमंगल सिंह ‘सुमन’ स्मृति सप्तदश अ.भा. सद्भावना व्याख्यान माला के तृतीय दिवस पर ‘देश की ज्वलंत समस्यायें, कारण एवं निवारण’ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किये। हाजी श्री अरशान खान ने कहा कि हमारे देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। खास बात यह है कि अधिकांश प्रतिभाऐं ऐसे शहर या ऐसे घर से निकल रहीं है जो अभावों में जी रहे है। हमे प्रयास करना चाहिए कि इन प्रतिभाओं को संपूर्ण अवसर प्राप्त हो सके।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कोटा से पधारे वरिष्ठ अधिवक्ता एवं दैनिक जननायक के पूर्व संपादक श्री अख्तर खान ‘अकेला’ ने ‘सोशल मीडिया का महत्व’ विषय पर कहा कि दो व्यक्तियों का संवाद जब समाज तक पहुंचता है तो यह अपने आप में सोशल मीडिया की देन है। सोशल मीडिया एक दोधारी तलवार है जिसके अपने सकारात्मक पक्ष भी है और नकारात्मक पक्ष भी। जहां एक ओर सोशल मीडिया हमारी आत्मरक्षा कर सकता है या शिक्षा का प्रसार कर सकता है तो वहीं यदि हम जागरूक न रहें तो सोशल मीडिया अपराध या आपसी द्वेष भी बढ़ा सकता है। ऐसे में हमारी भूमिकाऐं महत्वपूर्ण हो जाती है कि हम इसका उपयोग उचित रूप से करें। हमे चाहिए कि हम दूर स्थित किसी प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान में प्रसारित होने वाले ज्ञान को दूर दराज के छोटे से छोटे कस्बे में रहने वाले प्रत्येक विद्यार्थी तक पहुंचाकर इसका सदुपयोग करें, साथ ही हमारा फर्ज है कि हम परस्पर द्वेष फैलाने वाले किसी भी संदेश को प्रसारित न करें। महाभारत काल से ही सोशल मीडिया का रूप हमें देखने को मिला है जब अभिमन्यु ने पिता और माता का संवाद अपने जन्म से पूर्व ही सुन लिया था। महाभारत में ही संजय द्वारा युद्ध भूमि का वर्णन जब धृतराष्ट्र को सुनाया तो यह भी सोशल मीडिया का ही एक रूप था।
स्वागत उद्बोधन संस्था व्याख्यानमाला समिति के सचिव इंजी. सरफराज कुरैशी ने दिया। अतिथि परिचय श्री नईम खान ने दिया। व्याख्यानमाला के आरंभ में संस्था की छात्राओं ने सर्वधर्म प्रार्थना प्रस्तुत की। अतिथि स्वागत राजस्थान उच्च न्यायालय के एडव्होकेट्स श्री रामगोपाल चतुर्वेदी, श्री मुकेश सेन, श्री नरेन्द्र नारायण शर्मा, श्री कोशल शर्मा, भोपाल नवाब मुमताज अहमद खान, दिल्ली के श्री अमन खान, श्री मयंक काले, श्री क्रांति कुमार वैद्य, श्री प्रकाश खण्डेलवाल, श्री सतीश श्रीवास्तव, डॉ. आर. के. नागर, श्री अभिमन्यु त्रिवेदी एवं श्री ओमप्रकाश कुमायु ने किया।
इस अवसर पर वक्ताओं का शाल और श्रीफल से सम्मान किया गया। संचालन विद्यालयीन शिक्षिका श्रीमती प्रियंका शेवलकर ने किया। आभार विद्यालयीन निदेशक डॉ तनुजा कदरे ने माना।
अ.भा. सद्भावना व्याख्यानमाला में कल दिनांक 29 सितम्बर 2019 रविवार के आयोजन
1. गांधी शांति यात्रा का भारतीय ज्ञानपीठ में प्रवेश सांय 4 बजे।
2. सप्तदश अ.भा. सद्भावना व्याख्यानमाला दिनांक 29 सितम्बर 2019 को सांय 5 बजे से गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता (महाराष्ट्र) श्री प्रकाश आर. अर्जुनवार ‘महात्मा गांधी की सद्भावना और भविष्य’ विषय पर अपना व्याख्यान देंगे।
प्रेषक
डॉ. गिरीश पण्ड्या
संयोजक
अ.भा. सद्भावना व्याख्यानमाला समिति, उज्जैन
मोबा. 9926018122
सहकारिता महिलाओं की क्षमता बढ़ाने में सहायक है - श्रीमती शताब्दी पाण्डे
26-Sep-2019,20:39:39,व्याख्यानमाला | Download Press Note : Download |
सहकारिता महिलाओं की क्षमता बढ़ाने में सहायक है - श्रीमती शताब्दी पाण्डे
उज्जैन। सहकारिता महिलाओं को समाज से जोड़ने के योग्य बनाती है तथा नीति निर्धारण के लिए उन्हें प्रेरित करती है। सहकारिता ही महिलाओं की क्षमता बढ़ाने में सहायक है। सहकारिता ही वह माध्यम है जिससे महिलाऐं अपनी योग्यता महसुस करती है। जब महिलाऐं सहकारिता में एकजुट होकर भागीदारी करती है तो स्वयं की आर्थिक उन्नति करते हुये समाज को भी आर्थिक रूप से समृद्ध करती है। सहकारिता के माध्यम से महिलायें ग्रामिण, शहरी एवं सहकारिता के क्षेत्र में सशक्त हुई है। पशुपालन, मत्स्यपालन, डेयरी, शहद निर्माण आदि कई क्षेत्रों में महिलायें सहकारी संस्था का निर्माण कर आर्थिक विकास कर रही है। महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता मिलना बहुत आवश्यक है। उक्त विचार राष्ट्रीय महिला प्रमुख, सहकार भारती, रायपुर की निदेशक श्रीमती शताब्दी पाण्डे जी ने भारतीय ज्ञानपीठ में आयोजित कवि कुलगुरू डॉ. षिवमंगल सिंह ‘सुमन’ स्मुति सप्तदश अ.भा. सद्भावना व्याख्यान माला के प्रथम दिवस पर ‘सहकारिता के माध्यम से मातृशक्ति जागरण’ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किये। श्रीमती शताब्दी पाण्डे ने कहा कि सहकारिता के माध्यम से महिला खातेदारों की संख्या में वृद्धि होती है एवं निवेश भी बढ़ता है। सहकारी आन्दोलन ने महिलओं को समान अवसर प्रदान किये है। महिलाऐं भी पुरूष की तरह निवेश में रिस्क लेने के लिए सक्षम हो रही है। सहकारिता में संचालक मण्डल की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। सहकारिता के माध्यम से कार्य करने वाली महिलाओं में सुसंस्कार एवं सेवाभाव का निर्माण होता है। मातृशक्ति की अधिक से अधिक सहकारी संस्थाओं में भागीदारी होने से संवेदनशीलता और मातृत्व भाव से कार्य होता है।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में संभागीय सतर्कता समिति लोकायुक्त के अध्यक्ष श्री शशिमोहन श्रीवास्तव जी ने कहा कि राष्ट्र का विकास तभी संभव होगा जब समाज में सदभाव का वातावरण होगा। इतिहास गवाह है कि स्वतंत्रता की लड़ाई बिना सामाजिक भेद-भाव के लड़ी गई है। चिंता का विषय यह है कि आज सामाजिक सदभाव का आनन्द हो रहा है। ऐसे में हम सभी का दायित्व है कि हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलकर देश में फिर से सामाजिक समरसता का वातावरण निर्मित करें। हमारी संस्कृति संपूर्ण विश्व को एक परिवार मानने वाली रही है। यदि हम अपने राष्ट्र में सामाजिक सद्भाव से युक्त समाज का निर्माण कर पाते है तो ही हम संपूर्ण विश्व को एकजुट कर शांति और अहिंसा के मार्ग पर लेकर जा सकते है।
समारोह में व्याख्यानमाला के संयोजक श्री प्रेमनारायण नागर विशेष रूप से उपस्थित थे। व्याख्यानमाला के आरंभ में संस्था की छात्राओं ने सर्वधर्म प्रार्थना प्रस्तुत की। अतिथि स्वागत श्री श्री नवीन भाई आचार्य, श्री खुशाल सिंह वाधवा, डॉ. राकेश दण्ड, डॉ. पिलकेन्द्र अरोरा, श्री महेश ज्ञानी, श्री कवि आनन्द, संस्था निदेशक सुश्री अमृता कुलश्रेष्ठ, विद्यालयीन निदेशक डॉ. तनुजा कदरे, महाविद्यालयीन प्राचार्य डॉ. नीलम महाडिक, शिक्षा महाविद्यालयीन प्राचार्य डॉ. रश्मि शर्मा, विद्यालयीन प्राचार्य श्रीमती मीना नागर ने किया। स्वागत उद्बोधन संस्था अध्यक्ष श्रीकृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ ने दिया। इस अवसर पर संस्था अध्यक्ष श्रीकृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ का उनके जन्मदिवस पर शहर की विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मान किया गया।
इस अवसर पर वक्ताओं का शाल और श्रीफल से सम्मान किया गया। संचालन डॉ. गिरीश पण्डया ने किया। आभार श्री हरिहर शर्मा ने माना।
अ.भा. सद्भावना व्याख्यानमाला में कल दिनांक 27 सितम्बर 2019 गुरूवार के व्याख्यान
सप्तदश अ.भा. सद्भावना व्याख्यानमाला दिनांक 27 सितम्बर 2019 को सांय 5 बजे से नरसिंहगढ़ के सर्वधर्म वक्ता पण्डित श्री फारूक रामायणी ‘सर्वधर्म समभाव’ विषय पर अपना व्याख्यान देंगे एवं अध्यक्षता करते हुये इन्दौर के प्रसिद्ध पत्रकार एवं चिंतक श्री चिन्मय मिश्र जी ‘देश में सद्भावना की महत्वता’ विषय पर व्याख्यान देंगे।
संस्कृति की संवाहक मां है - गच्छादिपति आ.देव श्रीमद् विजय नि.सू.म.सा.
03-Oct-2018,12:09:04,व्याख्यानमाला | Download Press Note : Download |
सच के साथ संवाद होना जरूरी है - श्री राजेश बादल
03-Oct-2018,11:54:12,व्याख्यानमाला | Download Press Note : Download |
महिलाओं के लिए अनुकुल वातावरण निर्मित करना होगा - डॉ. राकेश कुमार गुप्ता
30-Sep-2018,20:05:44,व्याख्यानमाला | Download Press Note : Download |
महामना का चिन्तन हमें सामाजिक समरसता की ओर ले जाता है- डॉ. सुनील कुमार पाण्डेय
30-Sep-2018,16:24:13,व्याख्यानमाला | Download Press Note : Download |
दुःख के समय में भी खुशियों को ढूंढते आना चाहिए - ब्रिगेडियर पी.डी. तिवारी
29-Sep-2018,12:01:55,व्याख्यानमाला | Download Press Note : Download |
निःस्वार्थ सेवाभाव ही हमारी संस्कृति है - श्री के.पी. डोगरा
27-Sep-2018,16:51:25,व्याख्यानमाला | Download Press Note : Download |
श्री कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ अमृत महोत्सव एवं षोडश अ भा सद्भावना व्याख्यानमाला २०१८
27-Sep-2018,15:52:55,व्याख्यानमाला | Download Press Note : Download |
Press Note Day 7
30-Oct-2017,19:57:18,व्याख्यानमाला | Download Press Note : Download |
वसुधैव कुटुम्बकम लोकतन्त्र का आधार है- सुश्री मीनाक्षी नटराजन
उज्जैन। भारतीय दर्शन में वसुधैव कुटुम्बकम् का भाव प्रमुखता से है। वास्तव में वसुधैव कुटुम्बकम् ही लोकतंत्र का मजबूत आधार है। हमारें वेदों और उपनिषेदों में प्रत्येक संस्कृति को समाहित करने की बात कहीं गई है। जिस प्रकार नमक के पानी में घुल जाने के पश्चात् दुनिया की कोई भी विज्ञान प्रयोगशाला यह भेद नहीं कर सकती है कि नमक का कौन-सा कण पानी की किस बूँद से मिला है, उसी प्रकार हमें भी सभी के विचारों को एक मत में इस प्रकार समाहित करना चाहिए कि विचारों का भेद समाप्त हो जाए। यहीं भाव वसुधैव कुटुम्बकम् है। वर्तमान समाज में मनुष्यों के भीतर तो इतनी पाश्विकता व्याप्त हो चुकी है, कि इतनी पाश्विकता तो पशुओं में भी नहीं होगी। पशु जाति में तो लड़ाई सिर्फ पेट के लिए होती है किन्तु मनुष्यां में तो स्वार्थ पूर्ति की लड़ाईयाँ हो रही है। हमारी धरती तो जय जगत की धरती है। हमें इसके महत्व को समझते हुए आपसी द्वेष, वैमनस्य, हिंसा के भाव को त्याग कर सभी के प्रति सम्मान का भाव जागृत करना चाहिए। वसुधैव कुटुम्बकम् का ऐसा समाज निश्चित रूप से प्रेम, स्नेह और सौहाद्र से ओत-प्रोत होगा। यह भाव हमें रखना होगा कि ईश्वर का निवास प्रत्येक जीव में है और जीवों में कोई बड़े या छोटे का भेद-भाव नहीं है। वसुधैव कुटुम्बकम् में भय का कोई स्थान नहीं है। वसुधैव कुटुम्बकम् तो सिर्फ प्रेम और करूणा के माध्यम से लाया जा सकता है। हम सब मिलकर यह प्रण करे कि आज विचारों से व्यक्त वसुधैव कुटुम्बकम् के भाव को हम न सिर्फ अपने आचरण में लायेगे बल्कि जन-जन तक भारतीय संस्कृति के इस मूल मंत्र को पहुंचाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे। उक्त विचार ख्यात राजनीतिज्ञ सुश्री मीनाक्षी नटराजन ने ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम ही भारतीय समाज का आधार है’’ विषय पर भारतीय ज्ञानपीठ में आयोजित पद्मभूषण डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन स्मृति पंचदश अ.भा. सद्भावना व्याख्यानमाला के समापन दिवस पर मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किये।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए डॉ. विद्युत्प्रभा जी म.सा. ने ‘‘नारी अपने गौरव को पहंचाने’’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि नारी ने अपने आचरण से ऊँचाईयों को प्राप्त किया है। जब हम नारी की तुलना पुरूष के कार्यां से करते है तो ऐसा करते वक्त वास्तव में नारी के महत्व को पुरूष से कम आंकते है। हमें नारी को नारी के रूप में ही स्वीकार करना चाहिए। नारी की तुलना यदि करना ही हो तो वह सिर्फ धरती से ही की जा सकती। नारी में वह शक्ति है जो अपने व्यवहार से संसार को स्वर्ग बना सकती है। नारी ही है, जो परिवार को एकजुट करके रखती है।
समारोह के विशिष्ट वक्ता सांई फाउण्डेषन इंडिया के अध्यक्ष श्री के.पी. डोंगरे ने ‘‘मानवीय मूल्यों पर आधारित शिक्षा’’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि डिग्री तो हमें महाविद्यालयों से मिल जाती है किन्तु सच्चे मूल्य हमें परिवार द्वारा दिये गए संस्कार से ही प्राप्त होते है। सेवा, त्याग, धर्म, प्रेम जैसे गुणां का समावेश माँ द्वारा ही बच्चों में किया जाता है। संयुक्त परिवारों में ही भारतीय जीवन मूल्यों की आत्मा बसती है। हमें परिवारों का विघटन नहीं होने देना चाहिए। हमे दिमाग का उपयोग करके चांद पर पहुंच सकते है, किन्तु जीवन मूल्य मजबूत होना बहुत आवश्यक है और ऐसे महान मूल्यों का युवा पीढ़ी में कायम रखना हमारे द्वारा दी गई एवं शैक्षणिक संस्थाओं में दी गई शिक्षाओं का मूल दायित्व होना चाहिए।
समारोह के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री प्रेमनारायण नागर थे।
स्वागत उद्बोधन संस्था अध्यक्ष श्री कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ ने दिया। समारोह के प्रारभ में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन के सम्मुख दीप प्रजवलित किया गया एवं विद्यालयीन छात्राओं द्वारा सर्वधर्म प्रार्थना प्रस्तुत की गई। हमेशा की तरह सर्वधर्म प्रार्थना के दौरान एक धर्म की छात्रा द्वारा किसी अन्य धर्म की प्रार्थना का वाचन किया गया। अतिथियों का सम्मान शॉल और श्रीफल से किया गया। अतिथि स्वागत श्री महेशचन्द्र सोनी, श्रीमती चमेली देवी पटेरिया, श्री राधेश्याम दुबे, श्री ब्रजेन्द्र द्विवेदी, उमाशंकर मिश्रा, श्रीमती चन्द्रकला नाटानी, श्रीमती नुसरत खान, ने किया।
संचालन डॉ. नीलम महाडिक ने किया। व्याख्यान की जानकारी वेबसाईट पर उपलब्ध है।